चीनी
सेना ने लद्दाख में कई जगहों पर घुसकर चट्टानों को लाल रंग से रंग दिया
है, कई स्थानों पर अपने झंडे लगा दिए हैं। हमारी सेना इनकार कर रही है।
रक्षामंत्री कह रहे हैं कि कोई विवादित मुद्दा नहीं है। लद्दाख की सीमाओं
पर एकदम शांति है। वे पूरे मामले को मीडिया की देन बता रहे हैं। उधर चीनी
विदेश मंत्रालय ने भी इसे पूरी तरह से आधारहीन बताया है। वहां के विदेश
मंत्रालय ने कहा है कि दोनों देशों की सेनाएं सीमाओं का सम्मान कर रही
हैं।
दोनों ही तरफ से लॉ एंड आर्डर को बनाए रखा जा रहा है। अरूणांचल प्रदेश में
भी चीनी सेना की घुसपैठ चलती रहती है। दोनों ही क्षेत्रों की ऐसी
गतिविधियों के बारे में रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि कहीं तो आग होगी
तभी धुआं दिखाई दे रहा है। चीनी सरकार भले ही इस मामले को दबने का प्रयास
कर रही हों, लेकिन चीन की सेना लगातार घुसपैठ कर रही है, इसमें शक नहीं
है।
बहरहाल कुछ भी हो। पूरे मुद्दे पर अतीत से सबक सीखे जाने की जरूरत है।
नेहरू युग में भी इसी तरह की परिस्थितियों में हमें ना सिर्फ एक बेहद
खर्चीला युद्ध लड़ना पड़ा था बल्कि चीन ने भारत का लाखों वर्ग किमी भू-भाग
हथिया लिया था बल्कि आज तक उसे कब्जे में रखे हैं। हम न तो चीन से इस
मुद्दे पर कभी खुलकर बात कर पाए ना ही उसे साफ शब्दों में अपने सीमांत
हितों पर चेतावनी दे पाए थे।
समस्या हमारी विदेश नीति में छुपी है। हमें कभी भी राष्ट्रीय हितों को
लेकर उग्र नीति अपनाने वाले देशों मे नहीं गिना गया है। अन्य राष्ट्रों के
बीच हमारी छवि कुछ कमजोर और दब्बू देश की है, जो अपने हितों पर ढुलमुल सा
रवैया अपनाता है। आजतक अपने हितों की पैरवी के लिए आक्रमक रूख अपनाते नहीं
देखा गया। कश्मीर का प्रश्न हो या आतंकवाद का मुद्दा या इसी तरह का कोई
अन्य मसला हमारी इसी कमजोरी के चलते हम अकसर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गच्चा
खाते रहे हैं। ऐसे में हमें अतीत से सबक लेकर इसी बात को सुनिश्चित करना
चाहिए कि फिर हमारी कमजोरी हमारे भविष्य को कलंकित ना कर दे...
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